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रामायण - EP 16 - श्रीराम-सीता-लक्ष्मण का वन गमन

रामायण - EP 16 - श्रीराम-सीता-लक्ष्मण का वन गमन

Episode from रामायण .

episode · 1,351 Plays · 34:59 · Hindi

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जैसे सीता अपना पत्नी होने का धर्म निभाती हैं, उर्मिला भी लक्ष्मण संग जाने का हठ करती हैं। लेकिन लक्ष्मण उन्हें माता कौशल्या की सेवा के लिये अयोध्या में रूकने के लिये समझाते हैं और उससे वचन लेते हैं कि वो दिल में बसने वाली छवि के साथ उन्हें वन के लिये विदा करेंगी। लक्ष्मण जानते हैं कि इतिहास में उर्मिला का यह बलिदान अकथ ही रहने वाला है। प्रजा के बीच राम वनगमन के पीछे कैकेयी और भरत की मिलीभगत होने की चर्चा है। गुरूमाता द्वारा कैकेयी को समझाने का प्रयास भी विफल रहता है। वो कैकेयी को सौतेली माँ का पर्याय न बनने की सीख देती है लेकिन कैकेयी की बुद्धि नहीं बदलती। राम लक्ष्मण व सीता वनगमन के लिये पिता की आज्ञा लेने पहुँचते हैं। दशरथ राम से राजविद्रोह कर उनसे राज्य छीन लेने को कहते हैं। राम इसे नीतिविरूद्ध बताते हैं तो दशरथ मन्त्री सुमन्त को सारा राजकोष और सेना राम के साथ वन भेजने को कहते हैं। इस पर हस्तक्षेप करते हुए कैकेयी राम को तापस वेश में वन जाने को कहती है। मंथरा भगवा वस्त्र लाकर देती है। इससे आहत मंत्री सुमन्त भी विद्रोह की भाषा बोलते हैं। तब राम उन्हें शान्त करते हैं और कैकेयी के हाथों से मुनि वस्त्र ग्रहण करते हैं। कैकेयी सीता को भी तपस्वी वस्त्र देती हैं। तब महर्षि वशिष्ठ कैकेयी पर रूष्ट होकर आज्ञा देते हैं कि सीता वन में राजसी ठाठ के साथ रहेंगी क्योंकि वो राजा दशरथ के वचन से बंधी हुई नहीं हैं। तब सीता ससुर और गुरू से क्षमा मागते हुए अपना स्त्री धर्म निभाने की इच्छा प्रकट करती हैं। मंथरा सीता को भगवा वस्त्र पहनाने आती है और कुटिलतापूर्वक उनसे समस्त राजसी वस्त्र और आभूषण उतारने को कहती हैं लेकिन गुरूमाता आभूषण उतारने को अपशगुन बताती हैं और सीता को रोक देती हैं। सीता आभूषणों के साथ भगवा वस्त्र धारण करती हैं। राजा दशरथ सीता को जोगन वेश में देखकर विचलित हैं। वे बारम्बार उन्हें रोकते हैं। उनके पिता जनक को दिये अपने वचन की दुहाई देते हैं। स्थिति हाथ से निकलने की आशंका में कैकेयी राम से तत्काल राजमहल छोड़ने को कहती हैं। दशरथ पीछे से सुमन्त को भेजते हैं ताकि वो राम को रथ पर ले जायें और कुछ दिन वन में रहने के बाद समझाबुझा कर वापस ले आयें। राजमहल के बाहर उपस्थित जन समूह राजा दशरथ के विरूद्ध विद्रोह का नारा लगाता है। राम के समझाने पर प्रजा शान्त तो होती है लेकिन राम के रथ के पीछे पीछे वन को चल देती है। राम का रथ नगर से निकलता है। दशरथ राम राम पुकारते बाहर निकलते हैं और धरती पर गिर पड़ते हैं। वो कैकेयी का परित्याग करने का ऐलान करते हैं और भरत के राजा बनने पर उससे तर्पण का अधिकार छीन लेने की बात कहते हैं। राम वनगमन से हर किसी की आँख में आँसू है लेकिन राज महल में एक उर्मिला ही ऐसी है जो रो भी नहीं सकती। आखिर वो अपने पति को दिये वचन से बंधी है। उसका त्याग पूरी रामायण में अकथ ही रह गया है। नगर से बाहर तमसा नदी के निकट पहुँचने पर राम प्रजाजन से वापस लौटने का निर्देश देते हैं। प्रजा उनकी बात का पालन नहीं करती। Hosted on Acast. See acast.com/privacy for more information.